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What are the vedas?

What does the word ‘veda’ mean ? The Sanskrit word Veda, means knowledge. The Vedas are the scriptures of all true knowledge. The Vedas contain not only religious ideas, but also facts which all modern science has since proved true Atom, electrons, airships all seem to be known to the seers whom found the Vedas”. Read More …

वेद क्या है?

वेद विश्व का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है, विश्व में इससे पुराना कोई ग्रन्थ व पुस्तक नहीं है. वेद कहाँ आये है? कुछ मान्यता है की वेद भारत में उत्पन्न हुए है, लेकिन यह मान्यता सही नहीं है, क्योंकि वेद अपौरुषीय है, वेदों की किसी ने उत्त्पन्न नहीं किया, बल्कि यह मन्त्रों के रूप में सूक्ष्म Read More …

Sanskar Vidhi

Sanskar vidhi is written by swami dayanand saraswati. Read> Download > संस्कारों का महत्त्व – मानव-जीवन की उन्नति में संस्कारों का विशिष्ट महत्त्व है। मानव की शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक उन्नति के लिए जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त भिन्न-भिन्न समय पर संस्कारों की व्यवस्था प्राचीन ऋषि-मुनियों ने बहुत ही सुन्दर ढंग से की है । संस्कारों Read More …

Rigvedadi Bhashya Bhumika

ओ३म्ऋग्वेदादि भाष्य भूमिकामहर्षि दयानंद सरस्वती महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा लिखित ‘ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका’ वेदार्थ-बोध के लिए एक अनुपम ग्रन्थ है । यह ‘ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका’ – महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रणीत ग्रन्थ है। महर्षि ने वेद और वेदार्थ के प्रति अपने मन्तव्य को स्पष्टरूप से प्रतिपादित करने के लिये इस ग्रन्थ का का प्रणयन किया Read More …

Who is Arya?

#1 – Arya means a person whose actions are noble.#2 – one who does noble deeds#3 – People who are noble#4 – A noble one – a person with the following characteristics: (1) Knowledge or Education; (2) Good Charater; (3) Kindness; (4) Charitable; (5) Paying attention to duty; (6) Truthful; (7) Grateful; and (8) Non-violent. Read More …

Teachings of Arya Samaj

Primary Teachings of Arya Samaj. The main teachings of Arya Samaj are following: 1. God is the efficient cause of all true knowledge and all that is known through knowledge. 2. God is existent, intelligent and blissful. … 3. The Vedas are the scriptures of all true knowledge. … 4. One should always be ready Read More …

ऋग्वेद १.१.२ – अग्निः पूर्वेभिरृषिभिरीड्यो नूतनैरुत । स देवां एह वक्षति ॥

अग्निः पूर्वेभिरृषिभिरीड्यो नूतनैरुत । स देवां एह वक्षति ॥ भावार्थः जो मनुष्य सब विद्याओं को पढ़ के औरों को पढ़ाते हैं तथा अपने उपदेश से सबका उपकार करनेवाले हैं वा हुए हैं वे पूर्व शब्द से, और जो कि अब पढ़नेवाले विद्याग्रहण के लिए अभ्यास करते हैं, वे नूतन शब्द से ग्रहण किये जाते हैं। और Read More …

ऋग्वेद १.१.१ – अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । होतारं रत्नधातमम् ॥

अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । होतारं रत्नधातमम् ॥   यहां प्रथम मन्त्र में अग्नि शब्द करके ईश्वर ने अपना और भौतिक अर्थ का उपदेश किया है। (यज्ञस्य) हम लोग विद्वानों के सत्कार संगम महिमा और कर्म के (होतारम्) देने तथा ग्रहण करनेवाले (पुरोहितम्) उत्पत्ति के समय से पहिले परमाणु आदि सृष्टि के धारण करने और (ऋत्विज्ञम्) Read More …

Satyarth Prakash Chapter 5 – Samullas 5 – Hindi

पञ्चम समुल्लास अथ पञ्चमसमुल्लासारम्भः अथ वानप्रस्थसंन्यासविधि वक्ष्यामः ब्रह्मचर्याश्रमं समाप्य गृही भवेत् गृही भूत्वा वनी भवेद्वनी भूत्वा प्रव्रजेत्।। -शत० कां० १४।। मनुष्यों को उचित है कि ब्रह्मचर्य्याश्रम को समाप्त करके गृहस्थ होकर वानप्रस्थ और वानप्रस्थ होके संन्यासी होवें अर्थात् अनुक्रम से आश्रम का विधान है। एवं गृहाश्रमे स्थित्वा विधिवत्स्नातको द्विजः। वने वसेत्तु नियतो यथावद्विजितेन्द्रियः।।१।। गृहस्थस्तु यदा Read More …