ओ३म्
ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका
महर्षि दयानंद सरस्वती
महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा लिखित ‘ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका’ वेदार्थ-बोध के लिए एक अनुपम ग्रन्थ है । यह ‘ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका’ – महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रणीत ग्रन्थ है। महर्षि ने वेद और वेदार्थ के प्रति अपने मन्तव्य को स्पष्टरूप से प्रतिपादित करने के लिये इस ग्रन्थ का का प्रणयन किया है। महर्षि ने अपने वेद-भाष्य को ठीक-ठीक समझने और समझाने के लिए ही इस की रचना की । वेदार्थ के पाठक इस के विना महर्षि के वेद-भाष्य को समझ नहीं सकते ।
स्वयं महर्षि भूमिका का प्रयोजन बताते हुए वेद-भाष्य के विज्ञापन में लिखते हैं
(१) ‘जब भूमिका छप के सज्जनों के दृष्टिगोचर होगी, तब वेद-शास्त्र का महत्व जो बड़प्पन तथा सत्यपना भी सब मनुष्यों को यथावत् विदित हो जायेगा ।’
(पत्र और विज्ञापन, पृ० ३९ पर) (२) ‘जो कोई भूमिका के विना केवल वेद ही लिया चाहे, सो नहीं मिल सकते ।’ (पत्र और विज्ञापन, पृ० १३८ पर)
(३) ‘और यह भी जानना चाहिए कि चारों वेद की भूमिका एक ही है।’ (पत्रविज्ञापन, पृ० ८७)
(४) ‘भूमिका चारों वेदों की एक ही है ।” (पत्रविज्ञापन, पृ० ८६)
उपर्युक्त उद्धरणों से जहां भूमिका का प्रयोजन स्पष्ट होता है, वहां इस भ्रम का भी स्वामी जी के लेख से ही निराकरण हो जाता है कि यह भूमिका वेदादि सब शास्त्रों की है। किन्तु चारों वेदों के भाष्य की है । जैसे मकान बनाने से पूर्व नक्शे की आवश्यकता होती है, वैसे ही प्रत्येक वेद-भाष्यकार प्रथम वेद-भाष्य की भूमिका में अपनी मान्यताओं का स्पष्टीकरण करता है । अत: भूमिका के विना महर्षि के वेदभाष्य को समझना अत्यन्त दुरूह कार्य है । महर्षि ने इसलिए भूमिका के विना वेदभाष्य देने से मना किया था । परन्तु यह हमारा दुर्भाग्य ही रहा कि जो आर्य बन्धु तथा सभाएं महर्षि के आदेशों की अवहेलना करके विना भूमिका के वेदभाष्य छापती रही हैं। सायणादि भाष्यों के साथ उन की भूमिकाएं छपी मिलती हैं। हमें इस बात से बहुत ही हार्दिक हर्ष हो रहा है कि ‘आर्ष-साहित्य-प्रचार ट्रस्ट’ ने महर्षि के आदेश का पालन करते हुए उन के वेद-भाष्य को यथार्थ में हृदयङ्गम कराने के लिए वेद-भाष्य के साथ भूमिका को छपवाने का प्रबन्ध किया है । क्योंकि लेखक की मूलभूत वैदिक मान्यताओं को समझने के लिए उस की भूमिका का अध्ययन करना परमावश्यक होता है ।