Arya Samaj Vichar

Arya vichar 101

#1 सत्य बोलकर मित्र बनाना अच्छा है  परन्तु झूठ बोल कर मित्र बनाने से सत्य बोलकर शत्रु बनाना अधिक अच्छा है, क्योंकि आप संसार में सबको एक साथ प्रसन्न नहीं कर सकते .

Arya vichar 102

#2 वेद परस्पर मिलकर विचार करने, प्रेम से वार्तालाप करने, समान मन करने, ज्ञान प्राप्त करते हुए ईश्वर की उपासना करने का संदेश दे रहे हैं जिससे मानव जाति समुचित प्रगति करे।

Arya vichar 103

#3  परमात्मा के गुण -कर्म और स्वभाव अनन्त हैं, अतः उसके नाम भी अनन्त हैं | उन सब नामों में परमेश्वर का ओउम्नाम सर्वोतम है, क्योंकि यह उसका मुख्य और निज नाम है, इसके अतिरिक्त अन्य सभी नाम गौणिक है |

Arya vichar 104

#4  जैसे हाथी के पैर में सभी के पैर आ जाते हैं, वैसे ही इस ओउम् नाम में परमात्मा के सभी नामों का समावेश हो जाता है

Arya vichar 105

#5 परमात्मा का मुख्य और निज नाम तो ओउम् ही है | वेदादि शास्त्रों में भी ऐसा ही प्रतिपादन किया गया है | कठोपनिषद् में लिखा है |

Arya vichar 106

#6 सब वेद जिस प्राप्त करने योग्य प्रभु का कथन करते हैं, सभी तपस्वी जिसका उपदेश करते हैं, जिसे प्राप्त करने के लिए ब्रह्मचर्य का धारण करते हैं, उसका नाम ओउम् है |

Arya vichar 107

#7 ओ३म् शब्द तीन अक्षरों के मेल से बना है-अ, उ और म् | इन तीन अक्षरों से भी परमात्मा के अनेक नामों का ग्रहण होता है, जैसे – अकार से -विराट, अग्नि और विश्वादि | उकार से -हिरण्यगर्भ, वायु और तैजस आदि | मकार से -ईश्वर, आदित्य और प्राज्ञ आदि |

Arya vichar 108

#8 जहाँ-जहाँ स्तुति, प्रार्थना तथा उपासना हो और जहाँ सर्वज्ञ, व्यापक, शुद्ध, सनातन और सृष्टिकर्त्ता आदि विशेषण लिखें हों वहाँ अग्नि आदि नामों से परमेश्वर का ग्रहण होता है |

 

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