Beliefs of Arya Samaj
What Does Arya Samaj Believe? आर्य समाज क्या मानता है?
Dr. Vidhya Sagar
Edited and illustrated by Sumit Sharma
Contents – विषय
आर्य समाज क्या मानता है?
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम
योगिराज भगवान श्री कृष्ण
क्या आर्य समाज एक नास्त्तिक संस्था है?
आर्य समाज की परमात्मा विषयक मान्यता
क्या आर्य समाज मूर्तिपूजा मानता है?
आर्य समाज की स्थापना का उद्देश्य
कृण्वन्तो विश्वमार्यम् का अर्थ क्या है?
क्या आर्य समाज वेद को मानता है?
आर्य समाज क्या क्या मानता है?
आर्य समाज क्या मानता है?
जो लोग आर्य समाज से परिचित नहीं है उनकी ऐसी मान्यता है आर्य समाज कुछ नहीं मानता वह देवी देवताओं को नहीं मानता. भगवान राम और कृष्ण को नहीं मानता है. ऐसे भ्रामक विचार का निराकरण करना आवश्यक है, जिससे आर्य समाज का दृष्टिकोण साधारण लोगों के सामने आ सके.
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम
आर्य समाज के अनुसार भगवान् श्री राम भारतीय इतिहास के रत्न है, जिन्होंने ऐसे आदर्श उपस्थित किये जिनके कारण आज भी उनके राम राज्य की कामना की जाती है. श्री राम एक आदर्श पुत्र, आदर्श मित्र, आदर्श भाई, आदर्श पति ही नहीं अपितु आदर्श प्रजा पालक सम्राट भी थे. अपने शौर्य के बल पर जीते हुए राज्य उन्होंने स्वयं अपने पास नहीं रखे, यह कार्य उनकी उदारता का स्पष्ट उदहारण है. रावण की मृत्यु के बाद विभीषण को दी गयी सांत्वना को देखे तो पायेंगे की उनके हृदय में अपने शत्रु के प्रति भी कितना सम्मन था. जब विभीषण रावण की अंत्येष्टि करने से इनकार कर देता है, तो राम उससे कहते है “हे विभीषण ! रावण तुम्हारा भाई था, मरने के बाद वैर शांत हो जाते है. मेरा प्रयोजन सिद्ध हो चुका है, अब मेरे लिए भी वैसा ही है जैसा तुम्हारा. यह तुम्हारा कर्त्तव्य है की तुम उसका अंतिम संस्कार करो. राम के अनुकरणीय आदर्श चरित्र के कारण ही मर्यादा पुरुषोत्तम कह कर स्मरण किया जाता है.
महर्षि वाल्मीकि के अनुसार भगवान राम धर्मज्ञ, सत्यनिष्ठ, परोपकारी, किर्तियुक्त, ज्ञानवान, पवित्र जितेन्द्रिय और समाधी लगाने वाले, प्रजापति ब्रह्मा के समान प्रजा के रक्षक, सबके पोषक, शत्रु का नाश करने वाले और वेद वेदांगो के मर्मज्ञ थे. इसी प्रकार अन्य गुण भी उनमे थे जो उनके आदर्श का कारण बने.
योगिराज भगवान श्री कृष्ण
आर्य समाज जिस कृष्ण को मानता है, वे आप्त पुरुष है. इस विषय में महर्षि दयानंद ने जो विचार भगवान् कृष्ण के लिए प्रस्तुत किये है वह देखने योग्य है. सत्यार्थ प्रकाश के एकादश समुल्लास में वे लिखते है –
“ देखो! श्रीकृष्ण जी का इतिहास महाभारत में अत्युत्तम है। उन का गुण, कर्म, स्वभाव और चरित्र आप्त पुरुषों के सदृश है। जिस में कोई अधर्म का आचरण श्रीकृष्ण जी ने जन्म से मरणपर्य्यन्त बुरा काम कुछ भी किया हो ऐसा नहीं लिखा। ”
आप्त पुरुष महर्षि दयानंद उन्हे मानते है, जो यथार्थवक्ता हो और सब के सुख के लिए प्रयत्न करता हो. एक दूसरा वक्तव्य स्वाधीनता सेनानी लाला लाजपतराय ने अपने ग्रन्थ ‘कृष्ण चरित्र’ में दिया है – “ संसार के महापुरुषों पर दोषारोपण करने वाले उनके विरोधी ही रहे है किन्तु श्री कृष्ण ही ऐसे अकेले महापुरुष है जिनके चरित्र को कलंकित करने वाले उनके भक्त ही है ”
भगवान् श्री कृष्ण का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब कंस के अत्याचारों से सभी पीड़ित थे और उससे छुटकारा पाने के उपाय सोचते रहते थे. भगवान् कृष्ण ने कंस का वध करके, उसके पिता को ही राज्य दे दिया. कौरव – पाण्डवों के युद्ध में भी उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया और युधिष्ठिर के सार्वभौम राज्य की स्थापना के लिए सफल प्रयत्न किया. महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण योगिराज थे, उनकी एक पत्नी रुक्मिणी थी और एक ही पुत्र प्रध्युम्न था. उनके जीवन में किसी अन्य स्त्री का प्रेमिका रूप से प्रवेश नहीं था. इसी रूप में आर्य समाज उनके पावन चरित्र का गुणगान करता है. संसार की कुटिल गति देखिये की ऐसे पावन चरित्र को कलंकित करने का कार्य कवियों और गल्प रचयिताओ के द्वारा सारी मर्यादाओं को पार करके किया गया. उनके चरित्र को इतना कलंकित कर दिया की अन्य देशीय लोग ऐसे महापुरुषों पर ऊँगली उठाते है. भारतीय संस्कृति तो अपमानित होती ही है, इतिहास पर भी आंच आती है. इसमें दोष किसका है? आर्य (श्रेष्ठ) समाज का या उनके तथाकित भक्तों का? निश्चित रूप से यह कार्य श्री कृष्ण के विरोधियों का ही हो सकता है.
क्या आर्य समाज एक नास्तिक संस्था है?
आर्य समाज के विषय में यह प्रवाद प्रचलित है की यह एक नास्तिक संस्था है. इन लोगों के विचार से वह नास्तिक है जो मूर्ति पूजा नहीं करता. इस प्रश्नं को हल करने के लिए हम मानव जाती के आदि पुरुष मनु की शरण में जाते है और उनके विचार जानना चाहते हैं के वे किसे नास्तिक कहते हैं, मनु जी का उत्तर है – “ नास्तिकों वेद निन्दक:” नास्तिक वही है जो वेद का निन्दक है. इस दृष्टिकोण से तो आर्य समाज को, वेद का प्रचारक होने के नाते, नास्तिक नहीं कहा जा सकता. नास्तिक की अन्य परिभाषा में वह नास्तिक है जो ईश्वर को नहीं मानता. ईश्वर की वेदानुकूल मर्यादा को नहीं मानता. आर्य समाज ईश्वर को मानता है, जहाँ तक मूर्ति की बात है, वह न तो वेद सम्मत है और न आदिकाल से चली आ रही है. इसका प्रचलन जैन और बौध मतों के उदय के पश्चात ही हुआ है.