Month: September 2016

ऋग्वेद १.१.२ – अग्निः पूर्वेभिरृषिभिरीड्यो नूतनैरुत । स देवां एह वक्षति ॥

अग्निः पूर्वेभिरृषिभिरीड्यो नूतनैरुत । स देवां एह वक्षति ॥ भावार्थः जो मनुष्य सब विद्याओं को पढ़ के औरों को पढ़ाते हैं तथा अपने उपदेश से सबका उपकार करनेवाले हैं वा हुए हैं वे पूर्व शब्द से, और जो कि अब पढ़नेवाले विद्याग्रहण के लिए अभ्यास करते हैं, वे नूतन शब्द से ग्रहण किये जाते हैं। और Read More …

ऋग्वेद १.१.१ – अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । होतारं रत्नधातमम् ॥

अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । होतारं रत्नधातमम् ॥   यहां प्रथम मन्त्र में अग्नि शब्द करके ईश्वर ने अपना और भौतिक अर्थ का उपदेश किया है। (यज्ञस्य) हम लोग विद्वानों के सत्कार संगम महिमा और कर्म के (होतारम्) देने तथा ग्रहण करनेवाले (पुरोहितम्) उत्पत्ति के समय से पहिले परमाणु आदि सृष्टि के धारण करने और (ऋत्विज्ञम्) Read More …

Satyarth Prakash Chapter 5 – Samullas 5 – Hindi

पञ्चम समुल्लास अथ पञ्चमसमुल्लासारम्भः अथ वानप्रस्थसंन्यासविधि वक्ष्यामः ब्रह्मचर्याश्रमं समाप्य गृही भवेत् गृही भूत्वा वनी भवेद्वनी भूत्वा प्रव्रजेत्।। -शत० कां० १४।। मनुष्यों को उचित है कि ब्रह्मचर्य्याश्रम को समाप्त करके गृहस्थ होकर वानप्रस्थ और वानप्रस्थ होके संन्यासी होवें अर्थात् अनुक्रम से आश्रम का विधान है। एवं गृहाश्रमे स्थित्वा विधिवत्स्नातको द्विजः। वने वसेत्तु नियतो यथावद्विजितेन्द्रियः।।१।। गृहस्थस्तु यदा Read More …

Satyarth Prakash Chapter 4 – Samullas 4 – Hindi

अथ चतुर्थसमुल्लासारम्भः अथ समावर्त्तनविवाहगृहाश्रमविधि वक्ष्यामः वेदानधीत्य वेदौ वा वेदं वापि यथात्रफ़मम्। अविप्लुतब्रह्मचर्यो गृहस्थाश्रममाविशेत्।।१।। मनु०।। जब यथावत् ब्रह्मचर्य्य आचार्यानुकूल वर्त्तकर, धर्म से चारों, तीन वा दो, अथवा एक वेद को सांगोपांग पढ़ के जिस का ब्रह्मचर्य खण्डित न हुआ हो, वह पुरुष वा स्त्री गृहाश्रम में प्रवेश करे।।१।। तं प्रतीतं स्वधर्मेण ब्रह्मदायहरं पितुः। स्रग्विणं तल्प आसीनमर्हयेत्प्रथमं Read More …

Satyarth Prakash Chapter 3 – Samullas 3 – Hindi

तृतीय समुल्लास अथ तृतीयसमुल्लासारम्भः अथाऽध्ययनाऽध्यापनविधि व्याख्यास्यामः अब तीसरे समुल्लास में पढ़ने का प्रकार लिखते हैं। सन्तानों को उत्तम विद्या, शिक्षा, गुण, कर्म्म और स्वभावरूप आभूषणों का धारण कराना माता, पिता, आचार्य्य और सम्बन्धियों का मुख्य कर्म है। सोने, चांदी, माणिक, मोती, मूँगा आदि रत्नों से युक्त आभूषणों के धारण कराने से मनुष्य का आत्मा सुभूषित Read More …

Satyarth Prakash Chapter 1 – Samullas 1 – Hindi

प्रथम समुल्लास अथ सत्यार्थप्रकाशः   ओ३म् शन्नो मित्रः शं वरुणः शन्नो भवत्वर्य्य मा । शन्नऽइन्द्रो बृहस्पतिः शन्नो विष्णुरुरुक्रमः ।। नमो ब्रह्मणे नमस्ते वायो त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं बह्म्र  वदिष्यामि ऋतं वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि तन्मामवतु तद्वक्तारमवतु। अवतु माम् अवतु वक्तारम् । ओ३म् शान्तिश्शान्तिश्शान्तिः ।।१।। अर्थ-(ओ३म्) यह ओंकार शब्द परमेश्वर का सर्वोत्तम नाम है, क्योंकि Read More …

परोपकारिणी सभा क्या है?

परोपकारिणी सभा, महर्षि दयानंद की उत्तराधिकारिणी सभा है. महर्षि दयानंद जी ने अपना धन,  वस्त्र,  पुस्तक, यंत्रालय आदि परोपकारिणी सभा को सौंप दिए थे. इस सभा की स्थापना महर्षि ने की थी,  उन्होंने इस सभा के 3 उद्देश्य रखे थे. #1  आर्ष साहित्य का प्रकाशन द्वारा प्रसार #2  विश्व में वैदिक धर्म का प्रचार #3 Read More …